विशुद्ध स्वर रचनात्मक बदलाव का साक्षी

उद्गार

प्रणव कुमार

अन्तस को पवित्र एवं आलोकित करने वाला महीना कार्तिक

हम भारतीयों, खासकर सनातनियों के अन्तस को पवित्र एवं आलोकित करने वाला मास है  कार्तिक। संास्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से यह महीना सबसे पवित्र माना जाता है। हल्की सर्दी के साथ दिन में खिलने वाली धूप का आनन्द ही अनुपम है। न ज्यादा ठण्डी न ज्यादा गर्मी, अत्यंत अनुकूल मौसम लगता है। माहपर्यंत कार्तिक स्नान करने वाले भारतीयों की सिद्धिपूर्ति कार्तिक पूर्णिमा के स्नान-दान से संपन्न होती है। पूरा कार्तिक मास भारत के विभिन्न हिस्सों मे मनाये जाने वाले त्योहारों के उत्सव के कारण और भी उल्लास का महीना बन जाता है। विद्वान साहित्यकार स्व. श्री विद्यानिवास मिश्र के शब्दों में कहें तो ‘‘कार्तिक की हर साँझ तुलसी का चौरा दीपों से आलोकित हो उठता है।

बुआई-जुताई से थोड़ी सी फुरसत लेकर, जहाँ बैलों से खेती होती है, बैल नहला-धुलाकर सजाए जाते हैं, उनकी पूजा भी होती है। हमारा देश नंदी-मातृक और गो-मातृक देश है। इस महीने में कृष्णलीला से संबद्ध कला-रचना, नृत्य-गीत भी प्रारंभ हो जाती हैं। कार्तिक की पूर्णिमा को महारास की पूर्णिमा होती है। उस महारास का स्मरण अलग-अलग ढंग से अलग- अलग जगह किया जाता है। इस महीने में कहीं श्रीमद्भागवत की कथा, कहीं रासलीला, कहीं चकई- चकवा का खेल, कहीं साँझी की रचना, कहीं साँझ-साँझ दीया तुलसी के चौरे पर रखना, इस प्रकार पूरा महीना पूर्ण परितृप्ति का महीना है।’’

पति की दीर्घायु की कामना के साथ उत्तर भारतीय महिलाओं का पर्व करवा चौथ अब राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप ले रहा है, जिसमें बॉलीवुड के फिल्मांे का योगदान भी काफी है। महिलाओं में इसके प्रति बढ़ते रुझान का एक कारण इसकी हरतालिका के बनिस्बत सरल होना और भक्ति के बजाय आनन्द का उत्सव होना है, परन्तु कारण जो भी हों करवा चौथ का व्रत महिलाओं का अपने पति के प्रति समर्पण और उनकी मंगलकामना की भावना को बाल देता है। हर सोसाइटी मे समूह के तौर पर एक रंग-रूप में सजी-धजी महिलाएँ प्रकृति की अनुपम कृति अपने आप को और सुन्दर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़तीं। करवा चौथ के बाद आने वाला दीपोत्सव तो हर भारतीय के लिए खास है ही।

पति की दीर्घायु की कामना के साथ उत्तर भारतीय महिलाओं का पर्व करवा चौथ अब राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप ले रहा है, जिसमें बॉलीवुड के फिल्मांे का योगदान भी काफी है। महिलाओं में इसके प्रति बढ़ते रुझान का एक कारण इसकी हरतालिका के बनिस्बत सरल होना और भक्ति के बजाय आनन्द का उत्सव होना है, परन्तु कारण जो भी हों करवा चौथ का व्रत महिलाओं का अपने पति के प्रति समर्पण और उनकी मंगलकामना की भावना को बाल देता है। हर सोसाइटी मे समूह के तौर पर एक रंग-रूप में सजी-धजी महिलाएँ प्रकृति की अनुपम कृति अपने आप को और सुन्दर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़तीं। करवा चौथ के बाद आने वाला दीपोत्सव तो हर भारतीय के लिए खास है ही।

दीपावली का त्योहार इस बार राममंदिर के उद्घाटन की आहट और अयोध्या में एक साथ रिकॉर्ड दीयों के जलाने से और भी ऐतिहासिक हो गया है। योगी और मोदी सरकार की वजह से अयोध्या की दीवाली एक अंतर्राष्ट्रीय पहचान बनाता जा रहा है और आशा है कि निकट भविष्य मे ये भव्यता की और ऊँचाई को छुएगा।

दीवाली से संबंधित एक पहलू पटाखे फोड़ना और उस पर राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल तथा उच्चतम न्यायालय की रोक, खासकर शहरी और दिल्ली एनसीआर में, भी है। यह सच है कि दीपावली मुख्यतः साफ-सफाई और दीयों की रौशनी का त्योहार है। यह एक प्रतीक पर्व है, अंधकार से उजाले की ओर अग्रसर होने का, मन में यह विश्वास जगाने का कि तिमिर कितना भी घना हो, एक सकारात्मक ऊर्जा मनुष्य को उस तिमिर के पार ले जाएगी। दीवाली एक बड़ा व्यावसायिक अवसर भी लाता है और सिर्फ दिवाली सीजन में होने वाले कारोबार भारत के कारोबार को नई ऊँचाई पर ले जाते हैं, झाडू से लेकर हीरे-जवाहरात, कपड़ो से लेकर मिठाई, नमकीन, उपहार की

वस्तुएँ, गाड़ियाँ, पर्यटन, पटाखा, लघु और मझोले उद्योग जो तेल, दीया मोमबत्ती, प्रकाश की लड़ियाँ एवं अन्य वस्तुएँ सभी अपने व्यापार के उच्चतम स्तर तक पहुँच जाती हैं। इकोनॉमिक टाइम्स के एक अनुमान के अनुसार इस दीवाली 3.75 लाख करोड़ का व्यापार हुआ है।

भारत के पर्व और त्योहार वैज्ञानिक दृष्टि से प्रतिपादित हैं, अगर आप गौर करेंगे तो दीवाली से कुछ दिन पहले से काफी कीट-पतंगे पनपते हैं, और ये रोग के कारक भी हो सकते हैं। जब आप अपने घर की साफ-सफाई और रंग-रोगन करते हैं, तो आप घर के वातावरण को शुद्ध कर संभावित रोगजनक विषाणुओं और जीवाणुओं से अपनी रक्षा का तंत्र तैयार करते हैं। दिवाली की रात के तेल के दीयों में जलकर हजारों कीट-पतंगे खतम हो जाते हैं।

साफ-सफाई का यह सिलसिला लोक आस्था के महान पर्व छठ में और शिद्दत के साथ बढ़ता है, इसमें समाज का हर वर्ग गली-मुहल्लों की सफाई करता है। नदी, तालाब, उपवन, झील इत्यादि की सफाई भी इसी बहाने हो जाती है। यह प्रकृति के प्रति कृतज्ञता जताने का पर्व है। आसानी से मिलने वाले मौसमी फलों के साथ, समाज को एकरूप एक सूत्र में बाँधने का पर्व छठ के पौराणिक और वैदिक महत्त्व के बारे में सुधी लेखक अंकुश्री जी के लेख में विस्तार से व्यक्त किया गया है। मैं तो इसके सामाजिक और प्राकृतिक महत्त्व को ज्यादा महत्त्वपूर्ण मानता हूँ।

यह पर्व हमें दो चीज की याद दिलाता है, पहला हमें प्रकृति यानी हमारे सौर मण्डल के केंद्र में रखकर नदियों, वनस्पतियों इत्यादि की मानव जीवन में महत्ता को रेखांकित करता है, तो वह यह भी बताता है कि जीवन में भी सूर्य के उदय और अस्त होने की भाँति उतार-चढ़ाव आएँगे, हमें दोनों ही परिस्थितियों को आत्मसात् करना होगा। सत्य तो यही है कि सूर्य का उदय और अस्त होना पृथ्वी की घूर्णन के कारण है। सूर्य तो वही है, शाश्वत अपनी जगह खड़ा जगत कल्याण हेतु जलता हुआ। ठीक उसी तरह से व्यक्ति तो वही है, परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं। हमें भी सूर्य की भाँति अपने कर्म पथ पर अडिग रहते हुए सुख-दुःख दोनों में समभाव से जिंदगी जीने की कोशिश करनी चाहिए।

भारत के पूर्वी हिस्से से शुरू हुआ यह पर्व अब अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान बना रहा है और जाति-धर्म से ऊपर उठकर लोग इस पर्व को मना रहे हैं। आखिर सूर्य तो सबके हैं, उनके ओज की बिना प्रकृति में निर्माण असंभव है, तो आदित्य देव और छठी मइया के चरणों में विशुद्ध स्वर से जुड़े हर व्यक्ति की लिए हम प्रणाम निवेदित करते हैं। भगवान आदित्य सबका कल्याण करें।

हर अंक की भाँति इस अंक में भी अनेक विद्वान लेखकों व साहित्यकारों की रचनाओं से रचा सुंदर गुलदस्ता आप तक पहुँचाने का प्रयास किया गया है। स्तंभ सनातन धारा के अंतर्गत निर्मल वर्मा जी का प्रसिद्ध निबंध, ‘मेरे लिए भारतीय होने का अर्थ’ में अपने बचपन के सघन अनुभवों एवं जीवन के गूढ़ ज्ञान के माध्यम से हमारे सामने जो चिंतन रखते हैं, वह हमें भारतीयता की महान संस्कृति की खुश्बू पूरे संसार को सराबोर होने की बड़ी सूक्ष्म किंतु मधुरतम-मनभावन ध्वनी का एहसास देता है।

प्राचीन इतिहास के विद्वान लेखक डॉ. करुणा शंकर शुक्ल ने आर्य और अनार्य की कुछ वामपंथी इतिहासकार की खींची गलत तस्वीर को तथ्यपरक लेख के माध्यम से स्पष्ट करने का प्रयास किया है। हमारे नियमित स्तंभकार श्री पार्थसारथी थपलियाल जी ने अपने लेख ‘जिसकी जितनी संख्या भारी उतनी उसकी हिस्सेदारी’ के माध्यम से देश में जाति जनगणना के नाम पर पूरे देश को चुनावी फायदे के लिए जाति-पाँति में बाँटकर भारतीय समाज एवं देश में अलगाव पैदा करने की सोच की बड़ी तार्किक एवं तथ्यपरक की है।

पर्वोत्सव स्तंभ के अंतर्गत विद्वान ललित निबंधकार स्व. श्री विद्यानिवास मिश्र का निबंध ‘कार्तिक मास सुहावना’, कवि एवं लेखक डॉ. संजय पंकज जी का कवित्तमय लेख ‘अंतरतम के खरतम को अभी जलाना शेष है।’ साहित्यकार अंकुश्री जी का छठ पर केन्द्रित लेख ‘श्रद्धा, तपस्या और स्वच्छता का नाम है छठ व्रत’ के माध्यम से कार्तिक मास का महत्त्व तथा इसके प्रमुखत्योहार- करवाचौथ से प्रारंभ होकर दीवाली, छठ, देवोत्थान एकादशी एवं कार्तिक पूर्णिमा आदि त्योहारों के धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व तथा लोकसमाज से उसके जुड़ाव का अभिनव ललित अंदाज में व्याख्या एवं विश्लेषण किया गया है।

सामाजिक सरोकार स्तंभ के अंतर्गत डॉ. विनोद कुमार सिन्हा ने ‘भारतीय किसानों की बिखरी जिन्दगी में कब आयेगा निखार’ लेख में खेती-किसानी की दिनोदिन जटिल होती समस्या और समाधान का सांगोपांग विश्लेषण है। जनमत शोध संस्थान के निदेशक एवं प्रसिद्ध कवि अशोक सिंह ने झारखंड दिवस के अवसर पर अपने शोधपरक लेख ‘झारखंड की विकास यात्रा का पूरा सच और आदिवासी समाज’ में झारखंड के आदिवासियों के सपने, उम्मीदों और उनको पूरा करने में राज्य सरकारों द्वारा उठाये गए विविध कदमों तथा उनके विकास में आई विभिन्न बाधाओं का सुंदर समाधानपरक पड़ताल की गयी है।

बदलाव के वाहक स्तंभ में झारखंड के देवघर के हरे राम पांडेय द्वारा अपनों द्वारा त्यागे गए उन उन बेसहारा 35 बच्चियों का माता-पिता बनकर पालन-पोषण की संवेदनशील सच्ची कहानी का विवेचन किया गया है। साहित्य में इस बार राजेन्द्र परदेशी की कहानी ‘दूर होते रिश्ते।’ आशा पांडेय की कहानी ‘दंश’ तथा कन्नड़ लेखक सुमतीन्द्र नाडिग की कहानी ‘चंपा का पेड़। इसके साथ ही श्री अवधेश सिंह, प्रतिभा मिश्र तथा डॉ. संजय पंकज की कविताएँ आप पाठकों के संवेदनाओं को अवश्य झंकृत करेगी।

युवा लेखक अमनदीप वशिष्ठ भारतीय संस्कृति एवं दर्शन के गंभीर अध्येता हैं। स्तंभ मीमांसा के अंतर्गत आपको ‘वैष्णव चिंतन में अलोचनात्मक विवेक’ लेख हम सब की समझ को अधिक सुसंस्कृत एवं परिष्कृत करेगा। ऐसा मेरा विश्वास है। इसके साथ ही सभी स्थयी स्तंभ तो हैं ही। यह नवंबर अंक भी आपकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा, इसी विश्वास के साथ आपकी समालोचनात्मक प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा। आप सबको अनेक शुभकामनओ सहित।

 भवदीय

प्रणव कुमार